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साक़ी - असरार-उल-हक़ मजाज़ कविता - Darsaal

साक़ी

मिरी मस्ती में भी अब होश ही का तौर है साक़ी

तिरे साग़र में ये सहबा नहीं कुछ और है साक़ी

भड़कती जा रही है दम-ब-दम इक आग सी दिल में

ये कैसे जाम हैं साक़ी ये कैसा दौर है साक़ी

वो शय दे जिस से नींद आ जाए अक़्ल-ए-फ़ित्ना-परवर को

कि दिल आज़ुर्दा-ए-तमईज़-ए-लुत्फ़-ए-जौर है साक़ी

कहीं इक रिंद और वामाँदा-ए-अफ़्क़ार तन्हाई

कहीं महफ़िल की महफ़िल तौर से बे-तौर है साक़ी

जवानी और यूँ घिर जाए तूफ़ान-ए-हवादिस में

ख़ुदा रक्खे अभी तो बे-ख़ुदी का दौर है साक़ी

छलकती है जो तेरे जाम से उस मय का क्या कहना

तिरे शादाब होंटों की मगर कुछ और है साक़ी

मुझे पीने दे पीने दे कि तेरे जाम-ए-लालीँ में

अभी कुछ और है कुछ और है कुछ और है साक़ी

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Saqi In Hindi By Famous Poet Asrar-ul-Haq Majaz. Saqi is written by Asrar-ul-Haq Majaz. Complete Poem Saqi in Hindi by Asrar-ul-Haq Majaz. Download free Saqi Poem for Youth in PDF. Saqi is a Poem on Inspiration for young students. Share Saqi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.