नुमाइश में
वो कुछ दोशीज़गान-ए-नाज़-परवर
खड़ी हैं इक बिसाती की दुकाँ पर
नज़र के सामने है एक महशर
और इक महशर है मेरे दिल के अंदर
सुनहरा काम रंगीं सारियों पर
बिसात-ए-आसमाँ पर माह-ओ-अख़तर
जमाल-ओ-हुस्न के पुर-रोब तेवर
नुमायाँ चाँद सी पेशानियों पर
वो रुख़्सारों पे हल्की हल्की सुर्ख़ी
लबों में पुर-फ़िशाँ रूह-ए-गुल-ए-तर
सियह ज़ुल्फ़ों में रूह-ए-सुंबुलिस्ताँ
नज़र सर-चश्मा-ए-तसनीम-ओ-कौसर
अदा-ए-नाज़ ग़र्क़-ए-कैफ़-ए-सहबा
सियह मिज़्गाँ शराब-आलूदा नश्तर
चमक तारों की चश्म-ए-सुर्मगीं में
झलक चाँदी की जिस्म-ए-मरमरीं में
वो ख़ुशबू आ रही है पैरहन से
फ़ज़ा है दूर तक जिस से मोअत्तर
तबस्सुम और हँसी के नर्म तूफ़ाँ
फ़ज़ाओं में मुसलसल बारिश-ए-ज़र
निशात-ए-रंग-ओ-बू से चूर आँखें
शराब-ए-नाब से लबरेज़ साग़र
वो मेहराबें सी सीनों पर नुमायाँ
फ़ज़ा-ए-नूर में क्यूपिड के शह-पर
नफ़स के आमद-ओ-शुद से तलातुम
शब-ए-महताब में जैसे समुंदर
सितारों की निगाहें झुक गई हैं
ज़मीं फिर ख़ंदा-ज़न है आसमाँ पर
कोई आईना-दार-ए-हुस्न-ए-फ़ारस
किसी में हुस्न-ए-यूनानी के जौहर
किसी में अक्स-ए-''मासूम-ए-कलीसा''
किसी में पर्तव-ए-असनाम-ए-आज़र
ये शीरीं है वो नौशाबा है शायद
नहीं याँ फ़र्क़-ए-फ़र्हाद-ओ-सिकन्दर
ये अपने हुस्न में अज़रा-ए-वामिक़
वो अपने नाज़ में सलमा-ए-'अख़्तर'
ये ताबानी में ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ
वो रानाई में उस से भी फ़ुज़ूँ-तर
हँसी उस की तुलू-ए-सुब्ह-ए-ख़ंदाँ
नवा उस की सुरूद-ए-कैफ़-आवर
ये शोला-आफ़रीं वो बर्क़-अफ़गन
ये आईना-जबीं वो माह-पैकर
वो जुम्बिश सी हुई कुछ आँचलों को
वो लहरें सी उठीं कुछ सारियों पर
ख़िराम-ए-नाज़ से नग़्मे जगाती
वो चल दीं एक जानिब मुस्कुरा कर
किसी की हसरतें पामाल करती
किसी की हसरतें हम-राह ले कर
कभी आँखें दुकानों पर जमी हैं
कभी ख़ुद अपनी ही बर्नाइयों पर
इधर हम ने इक आह-ए-सर्द खींची
हँसी फिर आ गई अपने किए पर
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