शौक़ के हाथों ऐ दिल-ए-मुज़्तर क्या होना है क्या होगा
शौक़ के हाथों ऐ दिल-ए-मुज़्तर क्या होना है क्या होगा
इश्क़ तो रुस्वा हो ही चुका है हुस्न भी क्या रुस्वा होगा
हुस्न की बज़्म-ए-ख़ास में जा कर इस से ज़ियादा क्या होगा
कोई नया पैमाँ बाँधेंगे कोई नया वादा होगा
चारागरी सर आँखों पर इस चारागरी से क्या होगा
दर्द कि अपनी आप दवा है तुम से क्या अच्छा होगा
वाइज़-ए-सादा-लौह से कह दो छोड़े उक़्बा की बातें
इस दुनिया में क्या रक्खा है इस दुनिया में क्या होगा
तुम भी 'मजाज़' इंसान हो आख़िर लाख छुपाओ इश्क़ अपना
ये भेद मगर खुल जाएगा ये राज़ मगर इफ़शा होगा
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