रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
कशिश हुस्न की देखना चाहता हूँ
कोई दिल सा दर्द-आश्ना चाहता हूँ
रह-ए-इश्क़ में रहनुमा चाहता हूँ
तुझी से तुझे छीनना चाहता हूँ
ये क्या चाहता हूँ ये क्या चाहता हूँ
ख़ताओं पे जो मुझ को माइल करे फिर
सज़ा और ऐसी सज़ा चाहता हूँ
वो मख़मूर नज़रें वो मदहोश आँखें
ख़राब-ए-मोहब्बत हुआ चाहता हूँ
वो आँखें झुकीं वो कोई मुस्कुराया
पयाम-ए-मोहब्बत सुना चाहता हूँ
तुझे ढूँढता हूँ तिरी जुस्तुजू है
मज़ा है कि ख़ुद गुम हुआ चाहता हूँ
ये मौजों की बे-ताबियाँ कौन देखे
मैं साहिल से अब लौटना चाहता हूँ
कहाँ का करम और कैसी इनायत
'मजाज़' अब जफ़ा ही जफ़ा चाहता हूँ
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