Ghazals of Asrar-ul-Haq Majaz
नाम | असरार-उल-हक़ मजाज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Asrar-ul-Haq Majaz |
जन्म की तारीख | 1911 |
मौत की तिथि | 1955 |
जन्म स्थान | Lucknow |
यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर
ये तीरगी-ए-शब ही कुछ सुब्ह-तराज़ आती
ये मेरी दुनिया ये मेरी हस्ती
ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी
वो नक़ाब आप से उठ जाए तो कुछ दूर नहीं
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं
शौक़ के हाथों ऐ दिल-ए-मुज़्तर क्या होना है क्या होगा
साज़गार है हमदम इन दिनों जहाँ अपना
सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है
साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया
रुख़्सत ऐ हम-सफ़रो शहर-ए-निगार आ ही गया
रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
परतव-ए-साग़र-ए-सहबा क्या था
निगाह-ए-लुत्फ़ मत उठ ख़ूगर-ए-आलाम रहने दे
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील
मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं
कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या ऐ शोरिश-ए-दौराँ भूल गए
ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
ख़ामुशी का तो नाम होता है
करिश्मा-साजी-ए-दिल देखता हूँ
कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है
जिगर और दिल को बचाना भी है
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
हुस्न को बे-हिजाब होना था
दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं
धुआँ सा इक सम्त उठ रहा है शरारे उड़ उड़ के आ रहे हैं