Sad Poetry of Aslam Mahmood
नाम | असलम महमूद |
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अंग्रेज़ी नाम | Aslam Mahmood |
यही नहीं कि किसी याद ने मलूल किया
वो दर्द हूँ कोई चारा नहीं है जिस का कहीं
देख आ कर कि तिरे हिज्र में भी ज़िंदा हैं
तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा
सराब-ए-मअनी-ओ-मफ़्हूम में भटकते हैं
रंग सारे अपने अंदर रफ़्तगाँ के हैं
रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़
पत्थरों पर वादियों में नक़्श-ए-पा मेरा भी है
नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं
न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के
मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है
मैं हज्व इक अपने हर क़सीदे की रद में तहरीर कर रहा हूँ
मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया
क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ
किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया
जल रहा हूँ तो अजब रंग ओ समाँ है मेरा
देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश
दश्त मरऊब है कितना मिरी वीरानी से
बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ
अक्स जल जाएँगे आईने बिखर जाएँगे
ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ