Hope Poetry of Aslam Mahmood
नाम | असलम महमूद |
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अंग्रेज़ी नाम | Aslam Mahmood |
रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़
कहाँ भटकती फिरेगी अँधेरी गलियों में
तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा
सराब-ए-मअनी-ओ-मफ़्हूम में भटकते हैं
सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़
पत्थरों पर वादियों में नक़्श-ए-पा मेरा भी है
नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं
मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है
मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया
क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ
किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया
बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ
अक्स जल जाएँगे आईने बिखर जाएँगे