गुज़रते जा रहे हैं क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक जा
ग़ुबार-ए-राह तेरे साथ चलना चाहता हूँ मैं
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(802) Peoples Rate This
मिरे शौक़-ए-सैर-ओ-सफ़र को अब नए इक जहाँ की नुमूद कर
तेरे कूचे की हवा पूछे है अब हम से
मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है
सराब-ए-मअनी-ओ-मफ़्हूम में भटकते हैं
वो दर्द हूँ कोई चारा नहीं है जिस का कहीं
देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश
सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
जल रहा हूँ तो अजब रंग ओ समाँ है मेरा
रुक गया आ के जहाँ क़ाफ़िला-ए-रंग-ओ-नशात
हर रंग-ए-तरब मौसम ओ मंज़र से निकाला
आ गया कौन ये आज उस के मुक़ाबिल 'असलम'