सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
हर एक मोड़ पे आशोब इक नया रख आए
कहाँ भटकती फिरेगी अँधेरी गलियों में
हम इक चराग़ सर-ए-कूचा-हवा रख आए
तमाम उम्र सफ़र से ग़रज़ रही हम को
हर इख़्तिताम पे हम एक इब्तिदा रख आए
भटक न जाए मुसाफ़िर कोई हमारे ब'अद
सो राह-ए-शौक़ में हम अपने नक़्श-ए-पा रख आए
ये बे-समाअत ओ बे-चेहरा बसारत लोग
ये पत्थरों में कहाँ आप आईना रख आए
(722) Peoples Rate This