पत्थरों पर वादियों में नक़्श-ए-पा मेरा भी है

पत्थरों पर वादियों में नक़्श-ए-पा मेरा भी है

रास्तों से मंज़िलों तक सिलसिला मेरा भी है

पाँव उस के भी नहीं उठते मिरे घर की तरफ़

और अब के रास्ता बदला हुआ मेरा भी है

हब्स के आलम में भी ज़िंदा हूँ तेरी आस पर

ऐ हवा-ए-ताज़ा दरवाज़ा खुला मेरा भी है

बादलों से ऐ ज़मीं तू ही नहीं है ना-उमीद

राएगाँ सा अब के कुछ हर्फ़-ए-दुआ मेरा भी है

बे-बसारत शहर में बे-चेहरगी के दरमियाँ

इक दिया जलता हुआ इक आईना मेरा भी है

देखता हूँ मैं भी सब के साथ दुनिया को मगर

इक अलग ज़ौक़-ए-नज़र इक ज़ाविया मेरा भी है

तीरगी में आज अगर मैं हूँ तो हो सकता है कल

दस्तरस में चाँद हो आख़िर ख़ुदा मेरा भी है

(1589) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Pattharon Par Wadiyon Mein Naqsh-e-pa Mera Bhi Hai In Hindi By Famous Poet Aslam Mahmood. Pattharon Par Wadiyon Mein Naqsh-e-pa Mera Bhi Hai is written by Aslam Mahmood. Complete Poem Pattharon Par Wadiyon Mein Naqsh-e-pa Mera Bhi Hai in Hindi by Aslam Mahmood. Download free Pattharon Par Wadiyon Mein Naqsh-e-pa Mera Bhi Hai Poem for Youth in PDF. Pattharon Par Wadiyon Mein Naqsh-e-pa Mera Bhi Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Pattharon Par Wadiyon Mein Naqsh-e-pa Mera Bhi Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.