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Aslam Mahmood Khawab In Hindi - Best Khawab Of Aslam Mahmood Poetry Collection In Hindi - Darsaal

Khawab Poetry of Aslam Mahmood

Khawab Poetry of Aslam Mahmood
नामअसलम महमूद
अंग्रेज़ी नामAslam Mahmood

रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़

मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया

तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा

सराब-ए-मअनी-ओ-मफ़्हूम में भटकते हैं

रात आती है तो ताक़ों में जलाते हैं चराग़

न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के

मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है

मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया

किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया

देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश

अक्स जल जाएँगे आईने बिखर जाएँगे

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