रूठ कर निकला तो वो इस सम्त आया भी नहीं

रूठ कर निकला तो वो इस सम्त आया भी नहीं

और मैं ने आदतन जा कर मनाया भी नहीं

आन बैठी है मुंडेरों पर ख़िज़ाँ की ज़र्द लौ

मैं ने कोई पेड़ आँगन में उगाया भी नहीं

फिर सुलगती उँगलियाँ किस तरह रौशन हो गईं

उस ने मेरा हाथ आँखों से लगाया भी नहीं

अपनी सोचों की बुलंदी और वुसअ'त क्या करूँ

आसमाँ का साएबाँ क्या जिस का साया भी नहीं

फिर गली कूचों से मुझ को ख़ौफ़ क्यूँ आने लगा

जगमगाता शहर है 'असलम' पराया भी नहीं

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RuTh Kar Nikla To Wo Is Samt Aaya Bhi Nahin In Hindi By Famous Poet Aslam Kolsarii. RuTh Kar Nikla To Wo Is Samt Aaya Bhi Nahin is written by Aslam Kolsarii. Complete Poem RuTh Kar Nikla To Wo Is Samt Aaya Bhi Nahin in Hindi by Aslam Kolsarii. Download free RuTh Kar Nikla To Wo Is Samt Aaya Bhi Nahin Poem for Youth in PDF. RuTh Kar Nikla To Wo Is Samt Aaya Bhi Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share RuTh Kar Nikla To Wo Is Samt Aaya Bhi Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.