ज़ख़्मों का ब्योपारी है
ज़ख़्मों का ब्योपारी है
अच्छी साहू-कारी है
बोझल बोझल पलकों पर
रात अभी तक तारी है
बस इक पत्थर झुग्गी का
शीश-महल पर भारी है
साँप डसे इक उम्र हुई
नश्शा अब तक तारी है
चंद कहीं ये फैशन है
चंद कहीं बद-कारी है
अम्न-ए-आलम की ख़ातिर
जंग युगों से जारी है
मैं ही 'असलम' सच्चा हूँ
झूटी दुनिया सारी है
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