दोस्ती को आम करना चाहता है

दोस्ती को आम करना चाहता है

ख़ुद को वो नीलाम करना चाहता है

बेच आया है घटा के हाथ सूरज

दोपहर को शाम करना चाहता है

नौकरी पे बस नहीं जाँ पे तो होगा

अब वो कोई काम करना चाहता है

उम्र-भर ख़ुद से रहा नाराज़ लेकिन

दूसरों को राम करना चाहता है

बेचता है सच भरे बाज़ार में वो

ज़हर पी कर नाम करना चाहता है

मक़्ता-ए-बे-रंग कह कर आज 'असलम'

हुज्जत-ए-इत्माम करना चाहता है

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