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धनक की बूँद - असलम फ़र्रुख़ी कविता - Darsaal

धनक की बूँद

मेरा आँसू मुझे वापस दे दो

अब मैं आँसू न बहाऊँगा कभी

मैं ये मोती न लुटाऊँगा कभी

ये भी देखो कि हैं इस बूँद में क्या रंग छुपे

सोचता हूँ कि धनक है ये भी

इस में है ख़ून-ए-जिगर की सुर्ख़ी

है मिरे चेहरा-ए-ग़मनाक की ज़र्दी उस में

दर्द की नीलगूँ लहरों की तवानाई है

दिल के तालाब पे लहराती हुई

गुलगुली काई की सब्ज़ी भी तो है

उस में नारंजी शगूफ़ों की उदासी भी तो है

ऊदे बादल की लरज़ती हुई परछाईं भी है

मेरे माहौल की तारीक सफ़ेदी भी तो है

मेरा आँसू मुझे वापस दे दो

मैं ये मोती न लुटाऊँगा कभी

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