ख़ौफ़
एक साया सा दर आया
कोई नीला साया
काँप उठी शाख़-ए-नहीफ़
काँप उठी एक नई सी आहट
रात बढ़ती रही मस्मूम सियाह
सैल से बच के अकेला मैं कहाँ बैठा हूँ
जिस्म से नुक़्ते में तब्दील हुआ जाता हूँ
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एक साया सा दर आया
कोई नीला साया
काँप उठी शाख़-ए-नहीफ़
काँप उठी एक नई सी आहट
रात बढ़ती रही मस्मूम सियाह
सैल से बच के अकेला मैं कहाँ बैठा हूँ
जिस्म से नुक़्ते में तब्दील हुआ जाता हूँ
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