इंतिज़ार

कभी तुम हँस पड़ो

कभी

मैं हँस रहूँ

कि हम सब एक ही डाली पे अपने अपने लम्हे में

महकने और मुरझाने की ख़ातिर

फूल हैं

जिधर आ जाए मौज-ए-रूह-परवर

पत्तियाँ चमकीं

फ़ज़ा महके

मगर कब आए किस जानिब ये गहरा राज़ है

शायद कभी चलते हुए धारे में

कोई सब्ज़ा उग आए

कोई आवाज़ ख़ामोशी में अपने पर हिलाए

मगर कब और किस जानिब ये गहरा राज़ है

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Intizar In Hindi By Famous Poet Aslam Emadi. Intizar is written by Aslam Emadi. Complete Poem Intizar in Hindi by Aslam Emadi. Download free Intizar Poem for Youth in PDF. Intizar is a Poem on Inspiration for young students. Share Intizar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.