अब रात आ रही है
चलो अब दुआ करो नज़्में पढ़ो विसाल की सब आयतें पढ़ो
क्या रह गया है शाम का अब रात से फ़राग़
जब हर्फ़-ए-ख़ून-ए-दाग़
आँधी में एक नीम-नफ़स बे-हवा चराग़
इन क़हक़हों को रोक लो इक शब की बात है
मैं सोचता हूँ
चुप रहूँ लेकिन तुम्हीं बताओ
क्या ये हयात है
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