ज़हर
शब का सन्नाटा
अब तो पिघल जाएगा
रूह की तीरगी भी बिखर जाएगी
मेरे इस आईना-ख़ाना-ए-जिस्म में
कितने सूरज
ब-यक वक़्त दर आए हैं
अब ज़मीं की तिरी
ख़ुश्क हो जाएगी
साँप का ज़हर
सारा निकल जाएगा
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शब का सन्नाटा
अब तो पिघल जाएगा
रूह की तीरगी भी बिखर जाएगी
मेरे इस आईना-ख़ाना-ए-जिस्म में
कितने सूरज
ब-यक वक़्त दर आए हैं
अब ज़मीं की तिरी
ख़ुश्क हो जाएगी
साँप का ज़हर
सारा निकल जाएगा
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