आहट
तंहाई के सहराओं में
चलते चलते
अब तो मेरी
आँखों की वीरान गली से
पाँव के छाले
बह निकले हैं
इक मुद्दत से जिस्म की धरती
प्यासी है सूखे के कारन
जीवन के अँधियारे पथ पर
दूर तिलक सन्नाटा सा है
क़दमों की आहट भी नहीं है
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तंहाई के सहराओं में
चलते चलते
अब तो मेरी
आँखों की वीरान गली से
पाँव के छाले
बह निकले हैं
इक मुद्दत से जिस्म की धरती
प्यासी है सूखे के कारन
जीवन के अँधियारे पथ पर
दूर तिलक सन्नाटा सा है
क़दमों की आहट भी नहीं है
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