वक़्त का कुछ रुका सा धारा है
वक़्त का कुछ रुका सा धारा है
तुम ने शायद मुझे पुकारा है
तुम न आओगे ये भी है मालूम
चंद यादों का बस सहारा है
उन की यादों के चंद फूलों से
चमन-ए-ताज़ा दिल हमारा है
आज हम ने तो दे के जाँ अपनी
ज़िंदगी तेरा क़र्ज़ उतारा है
उन की नज़रों ने ज़ख़्म-ए-दिल को मिरे
मुंदमिल कर के फिर उभारा है
लोग कहते हैं उस को भी शबनम
सर-ए-मिज़्गाँ जो इक सितारा है
फिर भी हासिल सुकूँ नहीं 'असलम'
उम्र भर हसरतों को मारा है
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