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हमारी याद उन्हें आ गई तो क्या होगा - असलम आज़ाद कविता - Darsaal

हमारी याद उन्हें आ गई तो क्या होगा

हमारी याद उन्हें आ गई तो क्या होगा

घटा इधर की उधर छा गई तो क्या होगा

अभी तो बज़्म में क़ाएम है दो दिलों का भरम

नज़र नज़र से जो टकरा गई तो क्या होगा

धड़क रहा है सर-ए-शाम ही से दिल कम-बख़्त

विसाल-ए-यार की सुब्ह आ गई तो क्या होगा

ये सोचता हूँ कि दिल की उदास गलियों से

तुम्हारी याद भी कतरा गई तो क्या होगा

सुरूर आ गया रिंदों को देखते ही सुबू

जो मय-कदे पे घटा छा गई तो क्या होगा

वो बात जिस से धुआँ उठ रहा है सीने से

वो बात लब पे अगर आ गई तो क्या होगा

वफ़ा का दम न भरो दोस्तो तुम 'असलम' से

तुम्हें जो वक़्त पे झुटला गई तो क्या होगा

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