रग-ए-हर-साज़ ये कहती है कि ऐ नग़्मा-तराज़
रग-ए-हर-साज़ ये कहती है कि ऐ नग़्मा-तराज़
मुझ को इक सल्तनत-ए-सौत-ओ-सदा चाहिए थी
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रग-ए-हर-साज़ ये कहती है कि ऐ नग़्मा-तराज़
मुझ को इक सल्तनत-ए-सौत-ओ-सदा चाहिए थी
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