एक समुंदर एक किनारा एक सितारा काफ़ी है
एक समुंदर एक किनारा एक सितारा काफ़ी है
इस मंज़र में उस के अलावा कोई अकेला काफ़ी है
देने वाला झोलियाँ भर भर देता है तो उस का करम
लेने वाले कब कहते हैं दाता इतना काफ़ी है
एक ग़लत-अंदाज़ नज़र से गुलशन गुलशन दाग़ जलें
शबनम शबनम रुलवाने को एक ही जुमला काफ़ी है
ख़ुश्क लबों पर प्यास सजाए बहर-ए-आशाम नहीं हैं हम
हम जैसों को तिश्ना-लबी में एक ही दरिया काफ़ी है
अब तो और भी दुनियाएँ हैं मुंतज़िर-ए-अरबाब-ए-हवस
उन लोगों का क़ौल नहीं है हम को ये दुनिया काफ़ी है
शहर-ए-वफ़ा से दश्त-ए-जुनूँ तक चाहे जितने मराहिल हूँ
वहशत के तो दूसरे रुख़ पर एक दरीचा काफ़ी है
हुस्न-ए-सुख़न बाक़ी रखने को कुछ इबहाम ज़रूरी है
कहते कहते रुक जाने में है जो इशारा काफ़ी है
उस के अफ़्सूँ उस के फ़साने दोनों को मसहूर रखें
अक़्ल-ओ-जुनूँ की दहलीज़ों पर ख़्वाब का पहरा काफ़ी है
एक सभा दिल वालों की इक तान रसीले लोगों की
शहर के रौशन रखने को इतना सा उजाला काफ़ी है
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