नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
जो मर जाता मिरी वाबस्तगी में
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पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
तेरी यादें बहाल रखती है
किस के मातम में रो रही है रात
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
डूबने की न तैरने की ख़बर
मिरे वजूद के अंदर है इक क़दीम मकान
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
बाम-ओ-दर पर उतरने वाली धूप
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
नज़्म