मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
घने जंगल में खो रही है रात
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आइने पर तो है भरोसा मुझे
तेरी यादें बहाल रखती है
ज़ख़्म खा के भी मुस्कुराते हैं
सुनहरी धूप से चेहरा निखार लेती हूँ
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
डूबने की न तैरने की ख़बर
नज़्म
ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
सदियों को बेहाल किया था
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
किस के मातम में रो रही है रात