ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
आँख को नींद से जगाते हैं
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ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
किस के मातम में रो रही है रात
तेरी यादें बहाल रखती है
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
डूबने की न तैरने की ख़बर
सुनहरी धूप से चेहरा निखार लेती हूँ
शाम खुलती है तेरे आने से