हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
वो भी क़िस्सा किसी का सुनाने लगे
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किस के मातम में रो रही है रात
सुनहरी धूप से चेहरा निखार लेती हूँ
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
आइने पर तो है भरोसा मुझे
नज़्म
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था