डूबने की न तैरने की ख़बर
इश्क़-दरिया में बस उतर देखूँ
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ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने
सदियों को बेहाल किया था
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
नज़्म
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
शाम खुलती है तेरे आने से
हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
ज़ख़्म खा के भी मुस्कुराते हैं