चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
हर सितारा बुझाए बैठी हूँ
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किस के मातम में रो रही है रात
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
आइने पर तो है भरोसा मुझे
मिरे वजूद के अंदर है इक क़दीम मकान
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ
हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
सदियों को बेहाल किया था
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ