किस के मातम में रो रही है रात

किस के मातम में रो रही है रात

छुप के बाँहों में सो रही है रात

दुख है ठहरा हुआ निगाहों में

तेरी यादें बिलो रही है रात

मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर

घने जंगल में खो रही है रात

रौशनी ने लगाए जो इल्ज़ाम

बहती आँखों से धो रही है रात

इस को बाँहों में भर रही हूँ मैं

चाँद ख़ुद में समो रही है रात

वस्ल का दिन तुलूअ' होना है

मैं तो ख़ुश हूँ कि हो रही है रात

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