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मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है - आसिम वास्ती कविता - Darsaal

मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है

मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है

ख़ून पानी की जगह नील में आया हुआ है

वक़्त बे-वक़्त झलकता है मिरी सूरत से

कौन चेहरा मिरी तश्कील में आया हुआ है

पेश-बीनी है ये इल्हाम के आईने की

अक्स क़ुरआन का इंजील में आया हुआ है

कोई लम्हा मुझे तब्दील किए जाता है

क्या तग़य्युर मिरी तकमील में आया हुआ है

सरगुज़िश्त-ए-दिल-ए-तफ़रीह-तलब में जानाँ

ज़िक्र तेरा किसी तफ़्सील में आया हुआ है

मेरी आँखों में उगे ख़ौफ़-ज़दा ज़र्द कँवल

शार्क का अक्स मिरी झील में आया हुआ है

उस के महसूल पे दुश्मन की नज़र है 'आसिम'

जो इलाक़ा मिरी तहसील में आया हुआ है

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