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देर तक चंद मुख़्तसर बातें - आसिम वास्ती कविता - Darsaal

देर तक चंद मुख़्तसर बातें

देर तक चंद मुख़्तसर बातें

उस से कीं मैं ने आँख भर बातें

तू मिरे पास जब नहीं होता

तुझ से करता हूँ किस क़दर बातें

कैसी बेचारगी से करते हैं

बे-असर लोग बा-असर बातें

देख बच्चों से गुफ़्तुगू कर के

कैसी होतीं हैं बे-ज़रर बातें

सुन कभी बे-ख़ुदी में करते हैं

बे-ख़बर लोग बा-ख़बर बातें

उस की आदत है बात करने की

वो करेगा इधर उधर बातें

इंतिहाई हसीन लगती है

जब वो करती है रूठ कर बातें

आ मुझे सुन कि हो तुझे मालूम

कैसी होती हैं ख़ूब-तर बातें

सहल कट जाए ये तवील सफ़र

और कर मेरे हम-सफ़र बातें

कोई सुनता न हो कहीं 'आसिम'

यूँ न कर उस से फ़ोन पर बातें

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