चंद लम्हे विसाल-मौसम के
दर्द की एक बे-कराँ रुत है
हब्स मौसम का राज हर जानिब
चंद लम्हे विसाल-मौसम के
वो नशीली ग़ज़ाल सी आँखें
कोई ख़ुश्बू सियाह ज़ुल्फ़ों की
लम्स फिर वो हिनाई हाथों का
कोई सुर्ख़ी वफ़ा के पैकर की
फिर से शीरीं-दहन से बातें हों
दिल की दुनिया उदास है कितनी
कोई मंज़र भी अब नहीं भाता
चंद लम्हे विसाल-मौसम के
(702) Peoples Rate This