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कार-ए-दुनिया से गए दीदा-ए-बेदार के साथ - अासिफ़ शफ़ी कविता - Darsaal

कार-ए-दुनिया से गए दीदा-ए-बेदार के साथ

कार-ए-दुनिया से गए दीदा-ए-बेदार के साथ

रब्त लाज़िम था मगर नर्गिस-ए-बीमार के साथ

क़ीमत-ए-शौक़ बढ़ी एक ही इंकार के साथ

वाक़िआ' कुछ तो हुआ चश्म-ए-ख़रीदार के साथ

हर कोई जान बचाने के लिए दौड़ पड़ा

कौन था आख़िर-ए-दम क़ाफ़िला-सालार के साथ

मैं तिरे ख़्वाब से आगे भी निकल सकता हूँ

देख मुझ को न परख वक़्त की रफ़्तार के साथ

ज़ुल्म से हाथ उठाना नहीं आता है अगर

कुछ रिआ'यत ही करो अपने गिरफ़्तार के साथ

क़ीमत-ए-हुस्न-ओ-अदा जान की बाज़ी ठहरी

लोग आए थे वहाँ दिरहम-ओ-दीनार के साथ

हद से बढ़ कर भी तग़ाफ़ुल नहीं अच्छा होता

कुछ तअ'ल्लुक़ भी तो रखते हैं परस्तार के साथ

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