जमाल-ए-यार को तस्वीर करने वाले थे
जमाल-ए-यार को तस्वीर करने वाले थे
हम एक ख़्वाब की ताबीर करने वाले थे
शब-ए-विसाल वो लम्हे गँवा दिए हम ने
जो दर्द-ए-हिज्र को इक्सीर करने वाले थे
कहीं से टूट गया सिलसिला ख़यालों का
कई महल अभी ता'मीर करने वाले थे
और एक दिन मुझे उस शहर से निकलना पड़ा
जहाँ सभी मिरी तौक़ीर करने वाले थे
हमारी दर-बदरी पर किसे तअ'ज्जुब है
हम ऐसे लोग ही तक़्सीर करने वाले थे
जो लम्हे बीत गए हैं तिरी मोहब्बत में
वो लौह-ए-वक़्त पर तहरीर करने वाले थे
चराग़ ले के उन्हें ढूँढिए ज़माने में
जो लोग इश्क़ की तौक़ीर करने वाले थे
वही चराग़ वफ़ा का बुझा गए 'आसिफ़'
जो शहर-ए-ख़्वाब की ता'मीर करने वाले थे
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