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ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है - अासिफ़ साक़िब कविता - Darsaal

ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है

ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है

लफ़्ज़ों की बे-करानी बस्तों में भर गई है

दीवार-ए-दिल पे अब तक हम देखते रहे हैं

तस्वीर किस की लटकी किस की उतर गई है

उस की गली में हम पर पत्थर बरस पड़े थे

जैसा गुज़र हुआ था वैसी गुज़र गई है

जब ढूँडते रहे थे उतनी ख़बर नहीं थी

हम में किधर से आई दुनिया किधर गई है

भागी थी इक हसीना बाग़ों के शोर-ओ-ग़ुल से

उस की बला जवानी बच्चों से डर गई है

है चल-चलाव कैसा कैसा है आना-जाना

वो शाम जा चुकी थी अब वो सहर गई है

सीने के बीच 'साक़िब' ऐसा है मरना जीना

इक याद जी उठी थी इक याद मर गई है

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