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ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है - आसिफ़ रज़ा कविता - Darsaal

ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है

ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है

तिरा मिलना भी मुझ को खल रहा है

जिसे मैं ने किया था बे-ख़ुदी में

जबीं पर अब वो सज्दा जल रहा है

मुझे मत दो मुबारकबाद-ए-हस्ती

किसी का है ये साया चल रहा है

सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से

बरसता दूर इक बादल रहा है

फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम

अभी तक हाथ यज़्दाँ मल रहा है

दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है

जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है

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