कैसी आशुफ़्तगी-ए-सर है यहाँ
कैसी आशुफ़्तगी-ए-सर है यहाँ
रास सहरा यहाँ न घर है यहाँ
एक ग़म है कि बे-मुदावा है
एक रोना कि उम्र भर है यहाँ
जो भी काविश है बे-सिला बे-सूद
जो शजर है वो बे-समर है यहाँ
इक मसाफ़त कि तय नहीं होती
मंज़िलों मंज़िलों सफ़र है यहाँ
यूँ रिवायत से कट गए लेकिन
तजरबा जो है तल्ख़-तर है यहाँ
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