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हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था - आशू मिश्रा कविता - Darsaal

हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था

हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था

ज़मीं होती थी लेकिन आसमाँ होता नहीं था

हम अक्सर खेल में हारे हैं उस से इस तरह भी

वहीं पर ढूँडते थे वो जहाँ होता नहीं था

निकलते थे हमारे बात के मतलब हज़ारों

जो कहना चाहते थे वो बयाँ होता नहीं था

मैं ख़ाली वक़्त में टूटे सितारे जोड़ता था

तुम्हारा हिज्र ऐसा राएगाँ होता नहीं था

ख़ुदा भी साथ रहता था हमारे इस ज़मीं पर

ये तब की बात है जब आसमाँ होता नहीं था

हमारी क़ुर्बतें क्या थीं फ़क़त इक वाक़िआ' थीं

और ऐसा वाक़िआ' जो दास्ताँ होता नहीं था

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