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उन से मिला तो फिर मैं किसी का नहीं रहा - अशरफ़ शाद कविता - Darsaal

उन से मिला तो फिर मैं किसी का नहीं रहा

उन से मिला तो फिर मैं किसी का नहीं रहा

और जब बिछड़ गया तो ख़ुद अपना नहीं रहा

दीवार टूटने का अजब सिलसिला चला

सायों के सर पे अब कोई साया नहीं रहा

हर इक मकाँ से नाम की तख़्ती उतर गई

दिल की फ़सील पे कोई पहरा नहीं रहा

रहबर बदल गए कभी रहज़न बदल गए

और हम-सफ़र भी कोई पुराना नहीं रहा

अब उस के हुस्न में वो करिश्मे नहीं रहे

ताली तो बज रही है तमाशा नहीं रहा

शायद पड़ोस में कहीं बिजली गिरी है आज

देखो हमारे घर में अंधेरा नहीं रहा

दीमक लगी हुई है सलीबों पे शाद अब

रस्म-ए-जुनूँ निबाहने वाला नहीं रहा

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