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चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा - अशरफ़ शाद कविता - Darsaal

चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा

चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा

ख़ुद रहूँगा धूप में और साएबाँ दे जाऊँगा

मेरे अच्छे हम-सफ़र तुझ को भी मैं जाते हुए

राह से भटका हुआ इक कारवाँ दे जाऊँगा

हैं ज़ुलेखाएँ बहुत कोई भी यूसुफ़ हो तो मैं

मिस्र के बाज़ार में उस को दुकाँ दे जाऊँगा

जिस ने तोड़ा दिल मिरा और ख़्वाब किरची कर दिए

उस को शीशे का बना मैं इक मकाँ दे जाऊँगा

मेरे साहिल पर रुकेंगी जिस नज़र की कश्तियाँ

उस की पलकों को नया इक बादबाँ दे जाऊँगा

दुश्मनों के सामने तो बे-ख़तर जाऊँगा 'शाद'

तीर उन के तोड़ कर फिर इक कमाँ दे जाऊँगा

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