पर्दे मिरी निगाह के भी दरमियाँ न थे

पर्दे मिरी निगाह के भी दरमियाँ न थे

क्या कहिए उन के जल्वे कहाँ थे कहाँ न थे

जिस रास्ते से ले गई थी मुझ को बे-ख़ुदी

उस राह में किसी के क़दम के निशाँ न थे

राज़-आश्ना है मेरी नज़र या फिर आइना

वर्ना वो अपने हुस्न के ख़ुद राज़-दाँ न थे

कुछ बे-सदा से लफ़्ज़ नज़र कह गई ज़रूर

माना लब-ए-ख़मोश रहीन-ए-बयाँ न थे

आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबाँ

भूले तो यूँ कि जैसे कभी मेहरबाँ न थे

'अशरफ़' फ़रेब-ए-ज़ीस्त है कब इम्तिहाँ से कम

इस के सिवा तो और यहाँ इम्तिहाँ न थे

(869) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Parde Meri Nigah Ke Bhi Darmiyan Na The In Hindi By Famous Poet Ashraf Rafi. Parde Meri Nigah Ke Bhi Darmiyan Na The is written by Ashraf Rafi. Complete Poem Parde Meri Nigah Ke Bhi Darmiyan Na The in Hindi by Ashraf Rafi. Download free Parde Meri Nigah Ke Bhi Darmiyan Na The Poem for Youth in PDF. Parde Meri Nigah Ke Bhi Darmiyan Na The is a Poem on Inspiration for young students. Share Parde Meri Nigah Ke Bhi Darmiyan Na The with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.