बसीत-ए-दश्त की हुर्मत को बाम-ओ-दर दे दे
मिरे ख़ुदाया मुझे भी तो एक घर दे दे
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गुल-ए-ख़ुर्शीद खिलाऊँगा चला जाऊँगा
23-मार्च अज़ान-ए-सुब्ह-ए-नियाज़
फ़लक से रोज़ उतरते हैं रौशनी के ख़ुतूत
बदल के देख लिए ज़ाविए उड़ानों के
अब तो चलना है किसी और ही रफ़्तार के साथ