ऐ तजल्ली क्या हुआ शेवा तिरी तकरार का
ऐ तजल्ली क्या हुआ शेवा तिरी तकरार का
मर गया आख़िर को ये तालिब तिरे दीदार का
क्या बिना-ए-ख़ाना-ए-उश्शाक़ बे-बुनियाद है
ढल गया सर से मिरे साया तिरी दीवार का
रोज़ बेह होता नज़र आता नहीं ये ज़ख़्म-ए-दिल
देखिए क्या हो ख़ुदा हाफ़िज़ है इस बीमार का
नौ-मुलाज़िम लाल-ए-लब को ले गए तनख़्वाह में
बे-तलब रहता है ये नौकर तिरी सरकार का
देख नईं सकता 'फ़ुग़ाँ' शादी दिल-ए-आफ़त-तलब
ये कहाँ से हो गया मालिक मिरे घर-बार का
(728) Peoples Rate This