तिरी सूरत से हसीं और भी मिल जाएँगे
जिस में सीरत भी तिरी हो वो कहाँ से लाऊँ
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मंज़िल-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का रास्ता अपनाइए
नेकी बदी की अब कोई मीज़ान ही नहीं
इस को ग़ुरूर-ए-इश्क़ ने क्या क्या बना दिया
गुल्सितान-ए-ज़िंदगी में ज़िंदगी पैदा करो
पलकों पे इंतिज़ार का मौसम सजा लिया
ज़माने ने लगाईं मुझ पे लाखों बंदिशें लेकिन
शम्-ए-इख़्लास-ओ-यक़ीं दिल में जला कर चलिए
जो ज़रूरी है कार कर पहले
नफ़रतें दिल से मिटाओ तो कोई बात बने