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नग़्मा उल्फ़त का गा दिया मैं ने - अशोक साहनी साहिल कविता - Darsaal

नग़्मा उल्फ़त का गा दिया मैं ने

नग़्मा उल्फ़त का गा दिया मैं ने

इश्क़ को जगमगा दिया मैं ने

यारो अपने ही ख़ून से देखो

इस नगर को सजा दिया मैं ने

जो थे बेगाने बन गए अपने

ये भी कर के दिखा दिया मैं ने

ग़म-कदे को सँवार कर हर शाम

इक नया गुल खिला दिया मैं ने

आशियाँ अपना इक बनाने में

ख़ूँ पसीना बहा दिया मैं ने

जिन दिनों मैं जवान था 'साहिल'

उन दिनों को भुला दिया मैं ने

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