दिल की बस्ती में उजाला ही उजाला होता
काश तुम ने भी किसी दर्द को पाला होता
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मेरी तरह ज़रा भी तमाशा किए बग़ैर
उर्दू के चंद लफ़्ज़ हैं जब से ज़बान पर
नज़र नज़र में उतरना कमाल होता है
अब इस से पहले कि दुनिया से मैं गुज़र जाऊँ