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विरासत - अशोक लाल कविता - Darsaal

विरासत

जब अँधेरे से मैं डर जाता हूँ अब भी अक्सर

तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है

मुस्कुराहट हो या आहें या ख़ुशी के आँसू

हर इक एहसास की लज़्ज़त में समाया है तू

जब उभरती है रसोई से रसीली ख़ुशबू

जब किसी फूल के चेहरे पे जमाल आता है

तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है

मेरी आवाज़ ज़बाँ और मिरा अंदाज़-ए-बयाँ

मेरे एहसास ओ ख़यालात नज़रिया इम्काँ

तू ने ही बाँधे मिरे साथ के साज़-ओ-सामाँ

फिर भी गर मन में मिरे कोई वबाल आता है

तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है

शम-ए-उम्मीद लरज़ती है सहर से पहले

जब उतरती है थकन दिल में सफ़र से पहले

ख़ून हो जाते हैं अरमान असर से पहले

रास्ते में कोई पेचीदा सवाल आता है

तेरी उँगली को पकड़ने का ख़याल आता है

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