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रघुपति राघव राजा राम - अशोक लाल कविता - Darsaal

रघुपति राघव राजा राम

रघुपति राघव राजा राम

पतित पावन सीता राम

तुलसी की रामायन के

राम की लीला वाले राम

बचपन में थे दोस्त मिरे

और लड़कपन में हम-जाम

क़स्बे क़स्बे नगर नगर

जहाँ भी ले पहुँचे अय्याम

नाम तुम्हारा चलता था

बन जाते थे बिगड़े काम

देस तो क्या परदेस में भी

हमराही थे तुम हर गाम

मिले जकार्ता में भी तुम

लीला में बन कर इस्लाम

देश जो लौटा फिर न मिले

ढूँडा तुम को हर इक धाम

पता चला की क़ैद हो तुम

चारों तरफ़ त्रिशूल का दाम

रथ-यात्रा में मारे गए

राम की लीला वाले राम

और दिसम्बर छे के बा'द

जिस जा देखो क़त्ल-ए-आम

रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम

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